सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट एकता के प्रबल हिमायती थे कर्पूरी ठाकुर: माले

जन्मशताब्दी वर्ष में 100 वां जन्मदिन भाकपा-माले ने नौतन के बनकटवा में मनाया

भारत रत्न देने का प्रस्ताव देर से ही सही उपयुक्त कदम है: माले

नौतन 25 जनवरी।साल 2024 बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्मशती वर्ष है. उक्त अवसर पर उन्हें भारत रत्न देना देर से ही भला उपयुक्त कदम है।आज जब देश गहरे संकट से गुजर रहा है और नए साल में राम मन्दिर के नाम पर भाजपा द्वारा उन्माद फैलाने की पूरी पटकथा रची जा चुकी है, भाकपा (माले) ने कर्पूरी जी के जन्म दिन 24 जनवरी से महात्मा गांधी के शहादत दिवस 30 जनवरी तक, बिहार में 'संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ भाजपा हटाओ, देश बचाओ' पदयात्रा करने का निर्णय किया है. ऐसे में सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट एकता के प्रबल हिमायती रहे कर्पूरी जी के बहुआयामी पहलुओं पर एक नजर डालना सामयिक होगा.

       उक्त बातें भाकपा-माले नेता सुनील कुमार राव ने कहा जन्मदिन पर सभा को संबोधित करते हुए बनकटवा में कहा। उन्होंने कहा कर्पूरी जी सचमुच जननायक थे एक भविष्यद्रष्टा, सड़क हो या विधानसभा, सत्ता रहे या जाए, बिना फिक्र किए जनता का एक प्रतिबद्ध योद्धा, सामाजिक न्याय का दुर्घर्ष योद्धा, लेकिन, कर्पूरी जी इतना भर नहीं थे. वे बखूबी समझते थे कि घोर अन्याय पर आधारित समाज में वंचित तबके को आखिर कितना ही न्याय मिल पाए‌गा। लेकिन सांप्रदायिक ताकतों ने कैलाश पति मिश्र के अगुवाई में कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिरा दिया।

                            माले नेता सुरेंद्र चौधरी ने कहा कि भाषा, शिक्षा, आरक्षण आदि क्षेत्रों में कर्पूरी जी के किए गए कार्यों से हर कोई वाकिफ है. (गरीबों के बच्चों लिए 10 वां तक अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा, बिहार में पहली बार पिछडों के लिए 27℅ आरक्षण) इसने समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. मुख्यमंत्री बनने के बाद गांधी मैदान में उन्होंने तकरीबन 10-11 हजार इंजीनियरों को नियुक्ति पत्र देकर रोजगार के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय कदम उठाया था. आरक्षण को सामाजिक दिशा में एक हथियार मानते प्रतिगामी उन्हें बार-बार शिक्षा व कर्पूरी जी न्याय को महत्त्वपूर्ण थे. इसलिए दबंग तबकों का हमला झेलना पड़ा और उन्होंने इसे बखूबी झेला, अपनी सरकार गंवाई लेकिन अपने पथ पर अडिग रहे. उनकी नीतियों व कार्यक्रमों से बिहार में पिछड़ों, अतिपिछिड़ों और दलितों के साथ-साथ अगड़ी जातियों के गरीव तबके का एक मजबूत संश्रय स्थापित होना शुरू हुआ था. 


उन्होंने कहा कि अरवल जनसंहार के खिलाफ 1986 के ऐतिहासिक विधानसभा पेराव में आइपीएफ नेताओं पर बर्बर दमन हुए और नजरबंद कर दिया गया. कर्पूरी जी इसके खिलाफ बिहार विधानसभा में धरना पर बैठ गए और जब तक आइपीएफ नेताओं की रिहाई नहीं हुई वे लगातार धरना पर बैठे रहे. यह थी कर्पूरी जी की विशिष्टिता थीं, उसी प्रकार 1988 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 59 एमेंडमेंट्स के खिलाफ आइपीएफ के बिहार बंद को कर्पूरी जी ने अपना खुला समर्थन दिया और हर प्रकार के जुल्म दमन के खिलाफ बोलने वालों की अगली कतार में खड़े रहे. कर्पूरी जी से जुड़े ऐसे कई संस्मरण हैं जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग करते हैं. माले नेता रवींद्र राम ने कहा भूमि सुधार के बिना बिहार में सामाजिक बदलाव की बात बेमानी है. कर्पूरी जी ने यह कोशिश भी की, लेकिन सत्ता से लेकर प्रशासन तक कुंडली मारे बैठे सामंती ताकतें उनको सत्ता से बेदखल कर दिया। उन्होंने कहा आइए, कर्पूरी जी की राजनीति के मूल उसूलों को आत्मसात करते हुए देश को बचाने के लिए एक व्यापक एकता के निर्माण में हम सब अपना-अपना योगदान दे। कार्यक्रम में हेमंत साह, योगेन्द्र चौधरी,रंजू देवी,किरण देवी,लक्षमीना देवी आदि मौजूद थे।

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