बदलते परिदृश्य में पिछले कुछ वर्षों से ऐसा देखा जा रहा है कि मनुष्य के सबसे करीब रहनी वाली गौरैया चिड़ियों की संख्या में काफी कमी आई है। गांवों के बड़े बुजुर्गो से लेकर मध्यम उम्र के लोग भी इस बात को महसूस कर रहें हैं कि धीरे-धीरे इन चिड़ियों की संख्या में कमी होती जा रही है।
तकरीबन एक दशक पहले तक जहां गौरैया चिड़ियों के आशियाने (घोंसले ) घरों के अंदर से लेकर भवनों के स्लैबों, अटारियों पर नजर आती थी, आज यदा कदा हीं कहीं देखने को मिल जाता है। बुजुर्गो का कहना है कि हमारे समय में सुबह की नींद इन चिड़ियों की चहचहाहट के साथ खुलती थी।
वैसे तो गौरैया मांसाहारी एवं शाकाहारी दोनों है पर घरेलू चिड़िया होने के कारण इनका अधिकार दरवाजे से लेकर आंगन में सुखते हर अन्ना पर रहा है। यहां तक की कुछ वर्ष पहले तक बच्चों के खाने की कटोरी में भी इनका हिस्सा हुआ करता था।
लेकिन आज बदलते पर्यावरण एवं रहन सहन के साथ इन चिड़ियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। जैसे ग्रामीण क्षेत्रों कभी बहुतायत मात्रा में पायी जाने वाली मैना चिड़ियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हीं हो चुका है।
बुजुर्गो का कहना है हमारे समय में कृषि उपज के लिए इतनी ज्यादा मात्रा में रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जाता था । फसलों पर कीटनाशक दवाओं का प्रयोग तो विल्कुल नहीं किया जाता था। आज परिस्थितियां बदलीं हैं,साग सब्जी से लेकर सभी खाद्यान्न फसलों पर ज्यादा से ज्यादा रसायनिक खादों एवं जहरीला से जहरीला कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। जिससे खाद्यान्न से लेकर पर्यावरण तक प्रदुषित हो रहा है और इसका दुषपरिणाम छोटे बड़े पक्षियों पर भी पड़ रहा है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें