बिहार बोर्ड के के नए नियमावली को शिक्षक और वितरहित्त संस्थानों के विरुद्ध :प्रो परवेज आलम

बेतिया - शिक्षक नेता सह एनसीपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रो परवेज आलम ने बिहार बोर्ड के के नए नियमावली को शिक्षक और वितरहित्त संस्थानों के विरुद्ध बताया है ज्ञात हो बिहार में कालेजों के आभाव में सैकड़ों वित्तरहित कालेज खोले गए जिसकी जांचोपरांत बिहार इंटरमीडिएट काउंसिल के द्वारा मान्यता दी गई जो लग भाग चार दशक से संचालित हैं और बिहार के लगभग 60 प्रतिशत छात्रों को शिक्षा देने का काम इन्ही वितरहित संस्थानों ने किया है और आज सरकार के नीति से यहां के कर्मी भुखमरी के कगार पर हैं और इन संस्थानों का भविष्य संकट में है वर्षों संघर्ष के बाद नीतीश सरकार ने 2008 में वित्तरहित समाप्ति की घोषणा कर वित्तरहित कर्मियों को वार्षिक परीक्षा परिणाम पर उत्तीर्ण हुए छात्रों के अनुपात में अनुदान देने की घोषणा की और दो चार वर्ष अनुदान निर्गत भी हुआ अभी 2014 से अनुदान बाकी है इसी बीच बिहार बोर्ड का फरमान आया की 2016 से सभी अनुदानित कालेजों की मान्यता समाप्त कर दी गई अब नए नियमावली 2011/13 के मापदंड के अनुसार पुन जांच कराकर मान्यता लेनी होगी जिन्हे मान्यता मिलेगी उन्हें ही अनुदान मिलेगा एक तरफ परीक्षा परिणाम के आधार पर अनुदान देना था जो 2023 तक परीक्षा परिणाम घोषित हो चुके हैं तो अनुदान क्यों नहीं बोर्ड का तर्क है मान्यता समाप्त हो चुकी थी। अगर मान्यता समाप्त थी तो नामांकन क्यों कराया पंजीयन और परीक्षा फॉर्म क्यों भरवाया जब कर्मी कार्य किए है तो अनुदान कैसे रोक रखा है यह शिक्षा विभाग की हिटलरशाही नहीं तो और क्या है।

अभी नए नियमावली से अगर किसी कालेज को मान्यता मिल रही है तो तीनों संकाय में कुल 280 छात्रों का ही नामांकन होगा पहले इन कालेजों में तीनों संकाय में 1152 छात्रों सहित अतिरिक्त सीट वृद्धि भी होती थी। जिसके आंतरिक आय से आर्थिक सहयोग होता था अभी 280 छात्रों से एक साल में कुल आय लगभग 20 लाख ही होगा और कर्मियों का भुगतान एक दैनिक मजदूर के दर पर भी किया जाय तो सालाना भुगतान कम से कम 60 लाख होगा यह राशि कहां से आएगा एक तरफ सरकार का फरमान है वर्ग संचालन नियमित हो तो सरकार कालेजों में पुराने नियम के तहत सीट निर्धारित करे ताकि कर्मियों को आर्थिक सहयोग मिल सके तभी शिक्षक शिक्षा में रुचि लेंगे लेकिन सरकार ऐसा नहीं करेगी क्योंकि उसकी मनसा अनुदान नहीं देने और जिन्हे मिले उन्हें कम से कम मिले आज से पहले 599 अनुदानित कालेजों में सीटों की संख्या 11,50,080 थी अब नई व्यवस्था से इन कालेजों में 2,15, 640सीटे ही रहेंगी 9,34,440, सीटे कम हो जाएंगी साथ ही छात्रों के रिजल्ट के आधार पर इन कलेगों को मिलने वाला अनुदान भी काफी कम हो जाएगा मेरा मानना है सरकार द्वारा अनुदान में कटौती करने के लिए ही यह नियम लगाई है लेकिन इसका खामियाजा वित्तरहित कर्मियों के साथ लाखों छात्रों को भी भुगतना पड़ रहा है की सरकार के अपग्रेड पलस टू स्कूलों में शिक्षकों की कमी के साथ संसाधन की भी घोर कमी है जहां केवल नामांकन और फॉर्म भरा जाता है पढ़ाई से कोसों दूर हैं लेकिन इससे सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वह केवल डिग्री देने का काम कर रही जिसका प्रभाव समाज पर पड़ेगा और हमारे जन प्रतिनिधि केवल बयान बाजी तक ही सीमित हैं उन्हें भी केवल इन कर्मियों का वोट चाहिए अब भी समय है सरकार होश में आए और नए नियमावली को रद्द कर छात्रों के शिक्षा के साथ कर्मियों के कल्याण पर भी ध्यान दे अन्यथा इनका श्राप कहीं का नहीं रहने देगा।

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