क़र्बला की शहादत से इस्लाम पहुंचा बुलंदियों पर


बेतिया | मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है।यह महीना नया साल का पहला महीना है।इसी महीने मे इस्लाम को बचाने के लिए हजरत मोहम्दद(स.अ.) के नवासे हजरत हुसैन(र.अ.)अपने 72 साथियो ज्यादातर इनके अपने रिस्तेदार थे क़र्बला के मैदान मे शहीद हो गए।इनकी शहादत के बाद से मुहर्रम के दस दिन पुरी दुनिया मे शिया समुदाय इमामबाड़ो मे मातम मनाते है।

शिया समुदाय के पुरा परिवार दस दिन औरत,मर्द,बच्चे सभी कोई काले कपड़े पहनते है।गुरुवार से इंद्रा चौक स्थित शिया इमामबाड़ा मे भी मातम शुरु हो गया।देर संध्या पहले मजलिस लगती है जिसमे बाहर से आए मौलाना क़र्बला का वाक्या बयान करते है।उसके बाद मातम शुरु होता है।सासारम से आए मौलाना सय्यद कैसर रिज़वी ने कहा कि मोहर्रम अल्ल्हा का इबादत वाला महीना है

मौत से इंसान मुलकात नही करता है,बल्कि मौत इंसान से मुलकात करती है।क़र्बला का वाक्य जुल्म के खिलाफ लड़कर इंसानियत को बचाई गई।इस महीने शिया समुदाय के लोग दस दिन गमे हुसैन की याद मे मातम मनाते है।मजलिस के बाद मर्सिया पढ़ते हुए मजलिस मे शामिल सभी लोग जोर जोर से सीना पीटते है।यह सिलसिला दस दिनों तक चलता है।मजलिस मे सय्यद जही हुसैन,शब्बीर हुसैन,एजाज हुसैन,जहांगीर हुसैन,आसिफ हुसैन के साथ कई लोग शामिल थे

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