बेतिया :- जिला पश्चिमी चम्पारण बेतिया नगर निगम में नालों की सफाई के नाम पर घोटाले का मामला तूल पकड़ लिया है और नगर आयुक्त, मेयर तथा कुछ मिलीभगत पार्षदगण एक दूसरे पर सोशल मीडिया के जरिए जनता के समक्ष अपने पाकसाफ छवि सिद्ध करने में लगे हुए हैं। ज्ञात हो कि 30 मई को उक्त मामले को लेकर बेतिया नगर निगम के सभागार में सांसद डॉ संजय जायसवाल तथा विधायक रेणु देवी की उपस्थिति में बेतिया नगर आयुक्त, मेयर,उप मेयर सहित सभी वार्ड पार्षदों की बैठक हुई, जिसमें शहर की नालों की सफाई में घोटालों के मामले पर पार्षदों ने कहा कि सफाई कंपनी के लिस्ट के अनुसार वार्ड में सफाई हुई ही नहीं और नगर निगम द्वारा पैसा भुगतान कर दिया गया।
वही नगर निगम मेयर गरिमा देवी सिकारिया ने अपने बचाव में कहा कि वार्डों में मैनुअल नाला सफाई में सैकड़ों मजदूरों की संख्या के आधार पर भुगतान का आरोप बेबुनियाद है। पूर्व नगर परिषद सभापति के पद से हटाने के बाद नगर प्रशासक के द्वारा चयनित सफाई एजेंसी 'पाथ्या' को मजदूर की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि निकाले गए प्रति मिट्रिक टन कचरा के वजन के आधार पर भुगतान काकॉन्ट्रैक्ट दिया गया था और सफाई एजेंसी 'पाथ्या' की रिपोर्ट को निराधार व अनर्गल करार दिया है। उनका कहना है कि कुछ वार्ड सदस्यगण भी सोशल मीडिया पर इसको उछाल कर दिग्भ्रमित प्रचार कर रहे हैं।
जनता के प्रति मेरी समर्पण और ईमानदारी पर सवाल उठाए जा रहे है। जबकि महापौर पद पर उनके स्थापन से पूर्व ही नगर निगम प्रशासन नगर आयुक्त शम्भू कुमार के स्तर से 'पाथ्या' नाम की सफाई संस्थान से अनुबंध कर लिया गया था। उक्त सफाई एजेंसी के माध्यम से कचरा का उठाव और नालों की सफाई अनुबंध के आधार पर होती है। अनुबंध के शर्त में निगम क्षेत्र से प्रतिदिन निकलने वाले कचरे एवं गाद के लिए प्रति मिट्रिक टन के वजन के हिसाब से भुगतान किया जाता है, लेबर की संख्या के हिसाब से है।
मजदूर लगाने और सफाई संसाधन की जिम्मेदारी अनुबंधित एजेंसी 'पाथ्या' की है। स्टील डस्टबिन, ई-रिक्शा, मैजिक भान, पेंटिंग आदि चुनाव से भी पहले की प्रशासक के द्वारा की गई खरीदारी या कृत्य है। क्योंकि यह मेरे कार्यकाल में हुआ है, ना ही इसमें मेरी कोई भूमिका है। यह सब कृत्य 2020 में मुझे सभापति पद से हटाने एवं 2023 में मेयर बनने के बीच का है। जब कि शहर की जनता देख और समझ रही है कि शहर का विकास किस रूप में हो रहा है, नगर परिषद से नगर निगम तक का सफर में विकास कम घोटाला ज्यादा ही है लेकिन जनता का सवाल है कि 2017 के बाद जनता कुछ सोच कर ही मत दिया था।
जब जनता जनप्रतिनिधियों को चुनाव कर मेयर, उप मेयर, वार्ड सदस्य पद दी है तो पद मिलने के ततपश्चात नगर आयुक्त शम्भू कुमार द्वारा चुनाव से पूर्व किये गए कार्यों का लेखा जोखा जनता के समक्ष क्यों नहीं आया ? इससे यह जाहिर होता है कि पूर्व से ही नगर आयुक्त से पहचान होने के कारण मिलीभगत कर जनता का पैसा का बंदरबाट किया गया हो। जबकि इस कड़ी में नगर आयुक्त और 'पाथ्या' कंपनी की मिलीभगत और पहचान की पोर्टल से समाग्री की खरीदारी से निजी लाभ हो सकता है इसके लिए नगर आयुक्त पर जांचोपरांत आय से अधिक सम्पति की भी जाँच होनी चाहिए। इससे ढेर सारी षड्यंत्रकारी और भृष्टाचारी बेनकाब होंगे।
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