आंदोलन के लिहाज से यहां बड़ा जनभागीदारी वाला कार्यक्रम था, किंतु अखबारों ने बहुत ही कम जगह दिया- भाकपा माले

समाचारों के प्रकाशन में कई दलों के नामों को जानबूझकर प्रकाशित नहीं किया गया यह घोर निंदनीय- सुनील कुमार राव

बेतिया- भाकपा माले जिला कमिटी सदस्य सह किसान महासभा जिला अध्यक्ष सुनील कुमार राव ने कहा कि महागठबंधन द्वारा 15 जून आयोजित सभी प्रखंड मुख्यालयों पर केंद्र सरकार के जनविरोधी नीतियों और मोदी सरकार के 9 साल के तबाही - बर्बादी के खिलाफ धरना प्रदर्शन बहुत ही आक्रामक और भारी जन भागीदारी वाला कार्यक्रम रहा, जनता और महागठबंधन के घटक दलों के में व्यापक एकरूपता दिखाई दी! 

किंतु लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यहां के समाचार पत्रों ने सांप्रदायिक- फासीवादी मोदी राज की तरह बांटो और राज करो जैसा व्यवहार समाचार के प्रकाशन में दिखा! अखबारों में घटक दलों की व्यापक एकता को तोड़ने के लिए समाचारों के प्रकाशन में कई दलों के नामों को जानबूझकर प्रकाशित नहीं किया गया! आंदोलन के लिहाज से यहां बड़ा जनभागीदारी वाला कार्यक्रम था, किंतु अखबारों ने बहुत ही कम जगह दिया, आज फासीवाद के दौर में जब लोकतंत्र के तमाम संस्थाओं के अधिकार को सीमित और औपचारिक किया जा रहा है, ऐसे दौर में समाचार पत्रों की भूमिका लोकतंत्र को स्थापित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण बन जाता है, ऐसा देखा गया है कि समाचार पत्रों ने या इसमें बैठे लोगों की मानसिकता सामंती संप्रदायिक और विभाजन कारी बना हुआ है, 

भाकपा माले इस की तिखी निंदा करते हुए संप्रदायिक फासीवाद के दौर से जनता के मुक्ति के लिए जन आंदोलनों से अखबारों को जोड़ने का आह्वान किया, भाकपा माले ने कहा कि हिटलर- मुसोलिनी के साथ भारत में अंग्रेजी राज में भी स्वतंत्र पत्रकारिता को देखीं गई है किंतु आज अखबारों की भूमिका फासीवाद के पक्ष में दिखना या सिकुड़ना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत ही हानिकारक है, अखबारों को इसमें मुक्ति की रास्ता तलाशना होगा, लोकतंत्र- संविधान और प्रकाशन का राज स्थापित करना होगा भाकपा माले यह उम्मीद करता है कि महागठबंधन के 15 जून के कार्यक्रमों को जिसमें समाचार पत्रों ने मात्र एक दो दलों के नाम और नेताओं कार्यकर्ताओं का प्राथमिकता देने के बजाय सम्पूर्णता में सोचना चाहिए!

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