मुखिया जी बनते ही चार पहिया वाहन से नेम प्लेट लगा धुमते है इनके परिजन

आखिर वाहन खरिदने का पैसा आया कहां से?              

बेतिया -जी हां हम बात कर रहे हैं पंचायत चुनाव में जीते जनप्रतिनिधियों कि आप जानकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे चुनाव के पूर्व जीते मुखिया जी के पास धुमने के लिये दो पहिया वाहन था आज चुनाव जितने के कुछ महीनों के बाद चार पहिया वाहन से मुखिया जी का नेम प्लेट लगाकर पंचायत और जिले के कई क्षेत्रों में घूमते हुए नजर आ जाएंगे मजे की बात गाड़ी पर नेम प्लेट मुखिया जी का लगा और गाड़ी पर मुखिया जी के पति या रिश्तेदार घूमते हैं इतना ही नहीं सरकारी बैठकों में मुखिया जी के अनुपस्थित में उनके पति या पुत्र भाग लेते हैं और सरकारी कर्मी तथा ग्राम पंचायत से जुड़े पदाधिकारी भी इस पर चुप्पी साधे रहते हैं ऐसी हो रही हरकत खासकर उन पंचायतों में देखने को मिलती है जहां पर जनप्रतिनिधि के रूप में महिलाएं चुनाव जीतकर आई हुई है सवाल यह आखिरकार मुखिया जी के पास पैसा आया तो कहां से जो वे चारपहिया वाहन खरीद लिये अगर खरिदे तो चुनाव के पूर्व क्यों नहीं जब महिलाएं चुनाव जीती है तो सरकारी बैठकों एवं उनके खरिदे वाहन पर खुल्ले आम नेम प्लेट लगाकर उन्हें रिश्तेदार या पति किस हैसियत से घूम रहे हैं जानकारी के मुताबिक किसी भी पंचायती चुनाव में चुनाव जीते जनप्रतिनिधि को नेम प्लेट लगाकर घूमने का अधिकार उसके पंचायत सीमा या पंचायत के प्रखंड स्तर तक ही सीमित है उसी प्रकार जिला परिषद को नेम प्लेट लगाकर जिला तक घूमने का सीमित है तथा विधानसभा सदस्य को पूरे जीते हुए विधानसभा या जिस राज्य के विधानसभा से चुनाव जीते हैं उस राज्य तक घूम सकते हैं और सांसद को पूरे देश भर वही बैठकों में जीते हुए जनप्रतिनिधि ही भाग ले सकते हैं पर इस नियम को पंचायत स्तर के चुनाव जीते हुए जनप्रतिनिधि ताक पर रखकर चल रहे हैं जिसमें मुखिया जी या उनके रिश्तेदार काफी सक्रिय दिख जाते हैं बताते चलें कि इस प्रकार की हो रही लापरवाही पर जिला के पूर्व जिला पदाधिकारी नीलेश चंद्र देवेरे कड़ा रुख अपनाया था जिस कारण जिला स्तर एवं प्रखंड स्तर के बैठकों में चुनाव जीते मुखिया जी ही भाग लेते थे इतना ही नहीं पंचायत स्तर के चल रही विकास योजनाओं सरकारी राशि का दुरुपयोग करने के मामले में कई मुखिया जी पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी जिसको लेकर मुखिया जी को अपने कर्तव्य पुरी निष्ठा के साथ करते नजर आते थे लेकिन वर्तमान में इस प्रकार की हो रही लापरवाही पर कोई आला अधिकारी द्वारा इस पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है इस संबंध में युवा नेता संतोष कुमार शिक्षक केशव तिवारी समाजसेवी पुण्य देव प्रसाद दिपू कुमार यादव ई धर्मेंश कुमार मुन्ना महतो सागिर अहमद राजू पासवान शकिल अहमद आदि ने बताया कि शासक और प्रशासक दोनों को चाहिए कि इस कठोर कदम उठाए ताकि चुनाव में जीन महिलाओं को आरक्षण देकर सरकार ने आगे बढ़ाने का काम किया है और उनकी जगह उनके पति और रिश्तेदारों द्वारा इसका हनन किया जा रहा है यानी कहे तो पंचायत स्तर में चुनाव जीते हुए महिलाएं अपने पति और पुत्र के रिमोट कंट्रोल के तहत काम कर रही है जों नहीं होना चाहिए और जनता को भी चाहिए कि चुनाव जीती महिला को ही उस पद से संबोधित करें जिस पद पर वे चुनाव जिती है ना कि उनके पति और पुत्र को मामला जो भी हो लेकिन है एक चिंतनीय विषय?

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