भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव एक विचारधारा का नाम : प्रभु राज

बेतिया (सोनू भारद्वाज) शहीद-ए-आजम भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का आज शहादत दिवस ही नहीं बल्कि एक विचारधारा जो पूरी तरह से अपने में समेटे हुए साकार रुप से जमीन पर उतारने को उतावले थे वैसे बीर सपूतों का हमसे जुदा हो जाना था। वे लोग गोरी चमड़ी वालों को इस देश से भगाने मात्र नहीं बल्कि अंग्रेजों खदेड़ने के बाद इस देश में एक समाजवादी व्यवस्था कायम हो, इस जज्बे से वे आगे बढ़ रहे थे । 

भगत सिंह राजगुरु सुखदेव जब डीएवी कॉलेज लाहौर में पढ़ने गए तो वहां उनके प्राध्यापक जयचंद विद्यालंकार तथा भाई परमानंद जी से 1917 की सोवियत क्रांति के बाद सोवियत संघ में एक समाजवादी व्यवस्था जो पूरी दुनिया के लिए मजदूर वर्ग के नेतृत्व में चलने वाली सरकार सामने आई थी ।जिसको दुनिया भर के मजदूरों ने अपना आदर्श मानकर हर देशों में मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सरकार बनाने की परी कल्पनाएं करने लगे । जिसकी झलक उनके दोनों प्राध्यापकों को सुनने के बाद मिला । 

भगत सिंह ने कार्ल मार्क्स , एंगेल्स और लेनिन की विचारधाराओं का अध्ययन कर अपने मन: मस्तिष्क में बिठा लिया और उसे साकार रूप देने की दिशा में कार्य शुरू किया । भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह गदर पार्टी के नेता लाला लाजपत राय के बहुत करीब थे । लाला लाजपत राय उनके घर भी आते थे । 

वह भगत सिंह को बहुत मानते थे। भगत सिंह 1919 में जालियांवाला बाग कांड के बारे में सुनकर उसे देखने की ठान ली और जब वहां हजारों की संख्या में बैठे हुए लोगों पर निर्ममता पूर्ण गोरों द्वारा चलाई गई गोलियों से हजारों की तादाद में मारे गए निहत्थे लोगों तथा जान बचाने के लिए कुंए में कूद कर मरने की अंग्रेजी बर्बरता की दास्तां के यथार्थ से वाकिफ हुए । तो उन्होंने अंग्रेजों को अपने देश से भगाने की तरफ आगे बढ़ने लगे । भगत सिंह इस को मूर्त रूप देने के लिए एक पार्टी बनाई । जिसका नाम था भारत नौजवान सभा । 

भगत सिंह भारत नौजवान सभा में लोगों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया । यह काम मुख्य रूप से लाहौर और पंजाब के कुछ हिस्से ही में हुआ । फिर उनकी पार्टी ने निर्णय लिया कि हमें देश के अलग-अलग हिस्से में चलाए जा रहे अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलनो के नेतृत्वकारी लोगों से मिलकर एक राष्ट्रव्यापी बड़ा पार्टी बनाया जाना चाहिए । इस उद्देश्य से पंजाब से बाहर निकल कर वह दिल्ली , कानपुर होते हुए बिहार के कई हिस्सों में तथा बंगाल के क्रांतिकारियों को जोड़ने का काम किया । कानपुर में चंद्रशेखर आजाद से उनकी मुलाकात हुई । देश की आजादी की लड़ाई और आजादी के बाद देश में समाजवादी व्यवस्था कायम करने पर सहमति बनी । तो आगामी बैठक फिरोजशाह कोटला दिल्ली में हुई । 

जिसमें उनकी पार्टी हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक सेना में संशोधन करके समाजवाद को शामिल कर उस दल का नाम हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना रखा गया । जिसकी एक केंद्रीय कमेटी बनाई गई । जिसका अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद बनाए गए । इसी बीच भारत में साइमन कमीशन के आने के बाद चारों तरफ उसके विरोध में लोग सड़कों पर उतरने लगे। सर्वप्रथम जब वह मुंबई में आया तो वहां के टेक्सटाइल कंपनियों में काम करने वाले एटक से जुड़े हुए मजदूरों ने सभी टेक्सटाइल मिलों को बंद करके मजदूर सड़क पर उतर कर साइमन कमीशन वापस जाओ का नारा बुलंद किए । जब वह कमीशन पंजाब आया तो गदर पार्टी के नेता लाला लाजपत राय के नेतृत्व में जबरदस्त विरोध किया गया ।फलस्वरूप अंग्रेजों द्वारा लाठियां बरसाई गई और उसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए ।जिनका इलाज के क्रम में मृत्यु हो गई। 

लाला लाजपत राय की मृत्यु पर आक्रोशित हो भगत सिंह तथा हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने की घोषणा की । 17 दिसम्बर 1928 की संध्या लाहौर पुलिस अधीक्षक के ऑफिस को घेर लिया गया । तब तक एक मोटर साइकिल पर सवार पुलिस ऑफिसर को आते देख डायर समझ राजगुरु ने पहली गोली उसके माथे पर मार दी । जब वह नीचे गिरा तो भगत सिंह ने छ सात गोलियां और दाग दी । लेकिन वह सांडर्स था । चंद्रशेखर आजाद ,सुखदेव , राजगुरु के साथ भगत सिंह के भागने के क्रम में जब एक भारतीय सिपाही चंद्रशेखर आजाद को लगातार दबोचने की कोशिश कर रहा था । 

लाख समझाने पर भी जब नहीं माना तो चंद्रशेखर आजाद ने उसे भी गोली मार दी । उसके बाद लाहौर और पंजाब में दीवारों पर पर्चा सट गए की लाला लाजपत राय के मौत का बदला ले लिया गया । हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना के नायक चंद्रशेखर आजाद के सफल नेतृत्व में अनेक कार्यक्रम हुए । उनके नहीं चाहने के बावजूद भी बहुमत के फैसले के आधार पर 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम का विस्फोट किया । यह बम का धमाका था । इसका मतलब किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था । यह विस्फोट अंग्रेज सरकार द्वारा बनाए गए काले कानूनों के विरोध में था । इस बम कांड के बाद भगत सिंह देश की जनता के बीच और भी जनप्रिय हो गए । इस तरीके से भगत सिंह गिरफ्तार हुए तथा अपने उद्देश्य को न्यायालय के पटल पर अपने बहस करके देश के लोगों तक पहुंचाने का काम किए । उनके गिरफ्तार होने का मुख्य मकसद था की गिरफ्तारी के बाद देश के नौजवानों में अंग्रेजी गुलामी के खिलाफ प्रतिशोध की भावना उभरेगी । जेल में जाने के बाद कई केसों में फंसा कर राजगुरु , सुकदेव सहित उनको फांसी की सजा सुना दी गई । 

1928 के पहले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से ही इस दल को जाना जाता था । लेकिन जब उसमें संशोधन कर के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम दिया गया । तो सर्वप्रथम दल की ओर से बम का दर्शन नाम से एक पुस्तिका प्रकाशित की गई । जिसमें दल के उद्देश्य और उसके प्राप्ति के लिए आंदोलनों को जन आंदोलन में बदलने की बात की गई । 23 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की फांसी होने के बाद भी कार्यक्रम को और आगे बढ़ाने का सिलसिला चलता रहा । इसी बीच 27 फरवरी 1929 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के नायक चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजी पुलिस से घिर गए ।दोनों तरफ से गोलियां चलनी शुरू हो गई और जब उनके माउजर में एक गोली बच गई , तो वे अपने कसम को याद कर की अंग्रेजों की गोली से आजाद नहीं मरेगा । अंतिम गोली अपने माथे में मार कर भारत देश का सच्चा सपूत जो इस देश की आजादी के बाद देश में गरीबों और मजदूरों की हुकूमत बनाने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा था । वह कारवां कमजोर पड़ता गया।

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