प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, गरिमा और जीवनयापन लायक मजदूरी के लिए केन्द्रीय कानून बनाओ- भाकपा-माले
मनरेगा को मजबूत करो ताकि स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ें
बेतिया | बीते हफ्ते में सोशल मीडिया में बिहार और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों के मजदूरों पर तमिलनाडू में हमले की फर्जी खबरों के विरोध में भाकपा-माले- खेत व ग्रामीण मजदूर सभा ने बेतिया के मुख्य सड़क मार्च कर जिला समाहर्ता के गेट पर प्रदर्शन किया
भाकपा-माले जिला कमिटी सदस्य सुनील कुमार राव ने कहा कि होली के लिए अपने घरों के लौटते प्रवासी मजदूरों के बारे में प्रचारित कर दिया गया कि वे हमले की वजह से तमिलनाडू छोड़ कर जा रहे हैं. इस फर्जी खबर को विभिन्न मीडिया चैनलों और अखबारों ने उठा लिया और बिना सत्यता जांचे प्रसारित भी कर दिया. जैसे दैनिक भास्कर ने खबर छाप दी कि 15 बिहारी प्रवासी मजदूर तमिलनाडू में मारे गए हैं और अन्य बिहारी प्रवासियों को तालिबानी शैली के हमलों का सामना करना पड़ रहा है. माले नेता ने कहा कि यह भाजपा व उसके अन्य संगठनों का यह सोचीसमझी साजिश है, इस लिये जो जानबूझ कर प्रवासी मजदूरों पर हमले के फर्जी वीडियो पोस्ट कर रहे हैं और प्रवासी मजदूरों में भय और तनाव फैला रहे हैं, लोगों में भाषाई कलह और बंटवारा पैदा कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही की जाये.
आगे कहा कि हम संघ परिवार की इस पतित हरकत की निंदा करते हैं, जो तमिलनाडू के लोगों के खिलाफ घृणा के बीज बो कर राजनीतिक लाभ अर्जित करने की मंशा रखता है.
संघ ब्रिगेड एक बार फिर प्रवासी मज़दूरों को अपने राजनीतिक षड्यंत्र के औज़ार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है.
भाकपा-माले नेता सुरेन्द्र चौधरी ने कहा कि देश के मजदूर वर्ग पर मोदी सरकार की नवउदारवादी आर्थिक नीतियां कहर बरपा रही हैं. भयानक सूखा / बाढ़, निरंतर जारी कृषि संकट और सिमटते काम के अवसरों के कारण ग्रामीण तमिलनाडू भयानक रोजगार का संकट झेल रहा है. यहां से बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों को पलायन ही रहा है. महिलाएं और बुजुर्ग रोजगार विहीन हैं. ऐसी स्थिति में मनरेगा ही रोजगार का एकमात्र स्रोत है. पर जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, इस योजना को ही बर्बाद कर दिया गया है. मनरेगा के बजट में 33 प्रतिशत तक कटौती कर दी गयी है, जिसकी वजह से रोजगार की मांग करने के बावजूद करोड़ों मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. काम पूरा होने के बावजूद समय पर मजदूरों को मजदूरी न दे कर मनरेगा के उद्देश्य को सचेत रूप से पलीता लगाया जा रहा है. मनरेगा में केवल “भुखमरी भत्ता” देकर मोदी सरकार लोगों को समुचित रोजगार से वंचित कर रही है.
माले नेता सह बैरिया मुखिया संघ प्रवक्ता नविन कुमार ने कहा कि शहरों में -अनौपचारिक श्रम, एक दिन में 12 घंटे तक का काम, मजदूरी से सहित कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं, पीएफ़/ईएसआई नहीं, नारकीय जीवन स्थितियां, निरंतर मजदूरी की लूट, श्रम क़ानूनों की कोई सुरक्षा नहीं- जैसी अनिश्चितता से गुजर रहे प्रवासी मज़दूरों के मसलों को हल करने के बजाय मोदी सरकार उन्हें अपने घृणित राजनीतिक खेल के चारे के तौर पर उपयोग करना चाहती है.
अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा(खेग्रामस) नेता हारून गद्दी ने कहा कि केन्द्र सरकार प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा, गरिमा और जीवनयापन लायक मजदूरी के लिए केंद्रीय कानून बनाया जाये. राज्यों को भी अपने राज्यों के प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षा की योजनाएं बनानी चाहिए.
काम के दिनों को साल में 200 करके मनरेगा को मजबूत किया जाये ; मनरेगा में मजदूरी को बढ़ा कर 600 रुपये प्रति दिन किया जाये और मनरेगा के तहत लंबित मजदूरी तत्काल बांटी जाये- गांव में ही रोजगार सुनिश्चित किया जाये ! शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाया जाये ! इनके अलावा मजदूर नेता मुजमिल मियां, प्रकाश माझी, नविन हस्सन, लालबाबु सोनी आदि नेताओं ने भी सभा को संबोधित किया
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