राजस्व पार्षद के आदेश के बावजूद क्यों नहीं हो सका डोल वाग वगीचा भूमि का अधिग्रहण

बेतिया | बिहार सरकार के राज्य से पार्षद द्वारा 2018 में अपने पत्रांक 1089 दिनांक 10 मई 2018 में यह स्पष्ट जिक्र किया गया है की बेतिया राज की आम का बगीचा डोल वाग की 24 एकड़ भूमि को वन विभाग को अधिकृत कराया जाए ताकि आमों के बगीचा का अस्तित्व बच सके परंतु ताज्जुब की बात की अभी तक यह बगीचा बेतिया राज के कब्जे में ही है और वन विभाग द्वारा अभी तक इस की भूमि को अधिग्रहण नहीं किया गया बताते चलें कि उक्त बगीचा के भूमि को अधिग्रहण करके वन विभाग द्वारा पाक बनाया जाना था जिस पर दो हजार अट्ठारह के तत्कालीन वन विभाग के वन संरक्षक अपर सचिव लल्लन प्रसाद सिंह ने भी वन विभाग के वरीय अधिकारियों को इस पूरे मुद्दे पर कार्य करने के लिए पत्रकार भी किया था लेकिन अभी तक यह सिर्फ मामला फाइलों में धूल चाट रहा है इतना ही नहीं उक्त बगीचे को पाक बनाने के लिए उस समय के तत्कालीन जिला पदाधिकारी एवं बेतिया राज प्रबंधक भी कोट ऑफ अवार्ड को भी पत्राचार किए थे तथा बेतिया राज की संपत्ति की देखरेख कर रहे कोर्ट ऑफ अवार्ड भी बेतिया राज के बगीचे को पार्क बनाने के लिए अपनी सहमति भी दे चुका था लेकिन ना जाने आखिरकार किस कारण वर्ष यह मामला अभी तक दबा हुआ है और इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है तो दूसरी तरफ हरियाली से भरी इस आम के बगीचे प्रतिवर्ष हरे वृक्ष काटे जा रहे हैं तथा उक्त बगीचे की भूमि को अतिक्रमणकारियों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है जिसका जीता जागता उदाहरण चेक पोस्ट समेत आसपास के मोहल्ले हैं अब देखना है कि जहां जिले में दुर्गा वाग अमवा मन सरैया मन आदि जगहों को पर्यटन स्थल की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है ऐसी हालत में डोल बाग बगीचे को पार्क के रूप में विकसित क्यों नहीं किया जा रहा है जो पूर्व में है इस शासक और प्रशासन द्वारा प्रस्ताव भी लिया जा चुका है अगर इस बगीचे को चारदीवारी नहीं कराया गया तो आने वाली भविष्य में आम के सारे पेड़ों का नामो निशान मिट जाएगा और यह सिर्फ इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा जहां बात करें तो यह बगीचा डीएम आवास और आरक्षी केंद्र से महज 10 कदम दूरी पर है जहां विभिन्न प्रकार के आम के वृक्ष लगे हुए हैं और प्रतिवर्ष इस बगीचे से राजस्व के रूप में लाखों रुपए की कमाई बेतिया राज को होती है फिर भी इस बगीचे के रखरखाव पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है यह कहे तो भगवान भरोसे इस बगीचे का देख भाल है पीछे के इतिहास में देखा जाए तो वह कैसे लोग थे जिन्होंने इस बगीचे को हरा भरा वृक्ष लगाकर फल खाने के लिए लगया था और आज कैसे लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए इसे काट रहे हैं सवाल यह भी उठता हैवे कैसे प्रशासनिक पदाधिकारी थे जिन्होंने वगीचे के उद्धार के लिए प्रयास किए थे लेकिन इस ज्वलंत समस्या पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है इस संबंध में स्थानीय समाजसेवी पुणे देव प्रसाद इंजीनियर सुरेंद्र नारायण सिन्हा इंजीनियर धर्मेश कुमार वकील महतो वार्ड पार्षद श्यामा देवी सांसद प्रतिनिधि अनिल वर्मा समेत कई लोगों का कहना था कि जिला प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द उक्त आम के बगीचे को पार्क के रूप में विकसित कर इसे संरक्षण दिया जाए ताकि इसका अस्तित्व बच सके

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