नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण को रद्द करने के खिलाफ भाकपा-माले विरोध प्रदर्शन किया



पटना हाई कोर्ट ने नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण को गैरकानूनी बताए हुए आरक्षित सीटों पर चुनाव को रद्द कर दिया है। के खिलाफ भाकपा-माले ने राज्यव्यापी प्रतिवाद के तहत बेतिया समाहरणालय गेट बाबा साहेब अम्बेडकर जी के मुर्ति के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया, भाकपा-माले के सैकड़ो कार्यकर्ताओं ने आरक्षण विरोधी भाजपाईयों शर्म करो, अति पिछड़ों से प्रेम का ढोंग बंद करो, आरक्षण को खत्म करने की भाजपाई साजिश नही चलेगा, अति पिछड़ों को आरक्षण का प्रबंध करों आदि नारा लगा रहे थे, भाकपा-माले नेता रविन्द्र कुमार रवि ने कहा कि नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है, अति पिछड़ों का आरक्षण भाजपाई साजिश का शिकार हुआ है। आगे कहा कि हाई कोर्ट का कहना है कि निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले में तय “ट्रिपल टेस्ट” का पालन राज्य चुनाव आयोग ने नहीं किया है। इसलिए आरक्षण गैर कानूनी है। 

सुनने में सुप्रीम कोर्ट की बात ठीक लग सकती है, क्योंकि उसने आरक्षण रद्द करने की बात नहीं की है। बस, पिछड़ेपन की जांच करने को कहा है। लेकिन अगर इसकी प्रक्रिया को देखें तो साफ पता चलता है कि आरक्षण के मामले में यह अड़ंगा लगाना ही है। पिछड़ी/अतिपिछड़ी जातियों का पिछड़ापन कोई अबूझ पहेली नहीं है। इसकी जरूरत दिन के उजाले की तरह साफ है। शिक्षा और नौकरी में आरक्षण के साथ पंचायतों/नगर निकायों सहित अन्य राजनीतिक संदर्भों में पिछड़ों/अतिपिछड़ों को आरक्षण उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भाकपा-माले सह किसान महासभा जिला अध्यक्ष सुनील कुमार राव ने कहा कि बिहार में जातीय जनगणना होने वाली है। जनगणना के बिंदुओं को और व्यापक बनाने का निर्देश भी हाई कोर्ट दे सकता था जिससे कि पिछड़ों के आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट की शर्तें भी पूरी हो जातीं। चुनाव अंतिम चरण में था। आर्थिक संकट के इस गंभीर दौर में सरकार और जनता के करोड़ों रुपए खर्च हो चुके थे। इसे रोकना न सिर्फ एक भारी आर्थिक क्षति है, बल्कि स्थानीय स्तर पर कार्यरत लोकतांत्रिक प्रणाली को भी बाधित करना है। फिर, 2007 में नगर निकाय चुनाव के नियम बनने के बाद 3 बार चुनाव हो चुके हैं और पिछड़ों को आरक्षण भी दिया जा चुका है। हाई कोर्ट ने कुछ नहीं सोचा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नाम पर बहुत ही अव्यावहारिक, अविवेकपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण और पिछड़ा विरोधी फैसला लिया। नतीजा सामने है। निकाय चुनाव को ही कोर्ट के पचड़े में डाल दिया गया है। यह और कुछ नहीं, संघ–भाजपा की आरक्षण विरोधी गहरी साजिश का हिस्सा है। विगत दिनों हमने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट तक इस भाजपाई साजिश की चपेट में आता रहा है।

इनौस जिला अध्यक्ष फरहान राजा ने कहा कि पिछड़ों के आरक्षण के पक्ष में भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है और नीतीश सरकार को ट्रिपल टेस्ट की अवहेलना के लिए कोस रही है। यहां तक कि उसने इसके लिए नीतीश सरकार के खिलाफ आंदोलन भी किया है। इसे कहते हैं – चोर बोले जोर से! महज थोड़े समय को छोड़ दिया जाए तो विगत तीनों निकाय चुनाव – 2007, 2012 और 2017 के समय भाजपा के पास ही नगर विकास मंत्रालय रहा है। 2010 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी दो चुनाव हुए हैं, लेकिन न तो भाजपा का ज्ञान खुला और न ही उसमें पिछड़ा प्रेम जागा! वर्तमान चुनाव की प्रक्रिया भी भाजपा–जदयू सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुई थी। दरअसल, सत्ता खोने से बौखलाई भाजपा बिहार के सामाजिक–राजनीतिक जीवन में हर हाल में खलल डालने और व्यवधान पैदा करने में लगी है और ऊपर से पिछड़ा प्रेम का ढोंग भी कर रही है। इनके अलावा भाकपा-माले जिला नेता संजय यादव, योगेन्द्र यादव, प्रकाश माझी, आरिफ़ खां, विनोद कुशवाहा, मोजमिल मियां, हारून गद्दी, महमद सानू, बैरिया अंचल सचिव सुरेन्द्र चौधरी आदि नेताओं ने भी सभा को संबोधित किया.

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