मृत मेडिकल छात्र आदिल के परिजनों से मिले एवं उन्हें ढांढस बंधाया-वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता

सरकार के निजीकरण नीति के कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा, कम सीटों और अत्यधिक फीस के कारण भारतीय छात्र मेडिकल शिक्षा के लिए विदेश का रुख कर रहे हैं है- विधायक

भाकपा माले केन्द्रीय कमिटी सदस्य सह सिकटा विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने नरकटियागंज प्रखण्ड अन्तर्गत ग्राम हैसुआ गाँव में मृत मेडिकल छात्र आदिल के घर पहुंचकर उनके परिजनों से मिलते हुए उन्हें ढांढस बंधाया। 

 कजाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई करने गयें नरकटियागंज प्रखण्ड अन्तर्गत ग्राम हैसुआ निवासी महमद अमानुल्लाह के पुत्र महमद आदिल (21) का पिछले सप्ताह कजाकिस्तान में ही नदी के धार में बह रहें एक मित्र को बचाने के दौरान खुद आदिल का डुबने से मौत हो गयी, महमद आदिल का पार्थिव शरीर नदी में ही फंसे हुआ हैं, अभी तक नहीं मिल पाया है, मृतक महमद आदिल के पिता महमद अमानुल्लाह ने कजाकिस्तान मेडिकल कॉलेज प्रशासन और भारतीय दुतावास अधिकारीयों के रवैया पर आक्रोश व्यक्त किया, आगे उन्होंने कहा कि वहा पढ़ रहे दुसरे लड़को द्वारा मुझे घटना की खबर मिली है, काॅलेज प्रशासन द्वारा एक सप्ताह तक चुप्पी साधनें पर भी आपत्ति व्यक्त किया, भारतीय दुतावास द्वारा अभी तक कोई पहल नहीं किया गया है, 

विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि विकसित देशों में भी सस्ता व सुगम तरीके से मेडिकल व इन्जिनारिंग की पढ़ाई हो रहीं हैं,जबकि हमारा देश तो पिछड़ा है, यहां तो और आगे बढ़ कर अधिक से अधिक डाक्टर कैसे पैदा किया जाए इस सोच और नीति के तहत सस्ता से सस्ता फीस रखना चाहिए,मगर सरकार तो एकतरफा नीजिकरण की नीति पर चल रही है,नीजी मेडिकल कॉलेज, इन्जिनारिंग काॅलेज को बढावा दे रहीं हैं, जिसके कारण सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई के लिए चयन प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा काफी कठिन है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा में पास होना या उस प्रतियोगिता की तैयारी के लिए कोचिंग का खर्च भी काफी बैठता है. आगे कहा कि सरकारी क्षेत्र में, 200 कॉलेजों में 40 हजार सीटें हैं. इनमें कम लागत में बेहतर शिक्षा मिलती है, लेकिन यहां नामांकन पाना कठिन है. बाकी की सीट निजी कॉलेजों में होती हैं. जिनकी फीस काफी अधिक है.

कई कॉलेजों में तो फीस 12 लाख प्रति वर्ष से 25 लाख प्रति वर्ष तक है. अगर हम प्रबंधन कोटा की बात करें तो अधिकांश निजी कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स के लिए 70 लाख रुपए से एक करोड़ रुपए के बीच मांग करते हैं, जो हर परिवार के बूते की बात नहीं होती.

ऐसे में कड़ी प्रतिस्पर्धा, कम सीटों और अत्यधिक फीस के कारण भारतीय एवं मेवाती छात्र एमबीबीएस (मेडिकल शिक्षा) के लिए विदेश का रुख कर रहे हैं. जैसे कजाकिस्तान यूक्रेन रूस, अमेरिका, चीन आदि देशों में जहां 15 से 18 लाख रूपये में एमबीबीएस की पढ़ाई पुरी हो जा रहीं हैं, जिसके कारण भारतीय छात्र विदेश में जा रहे हैं, जहां तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, भारत सरकार जब तक सस्ती और आसान प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक में सभी समुदाय के लिए नीति और नीजी शिक्षा संस्थानो पर सस्ती शिक्षा के लिए नकेल नहीं कसेगी तब तक सुधार नही होगा , सभी लोगों को मिलकर नीजिकरण की नीति के खिलाफ संघर्ष तेज़ कर सरकारी संस्थानो को बचाना होगा.

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