भेदभाव व आरक्षण विरोधी नयी शिक्षा नीति 2020 को वापस ले सरकार : आइसा
बेतिया | ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) ने एमजेके कॉलेज बेतिया में 9 सूत्री मांगों के साथ हस्ताक्षर अभियान की सुरूआत किया, भेदभावपूर्ण व आरक्षण विरोधी नई शिक्षा नीति 2020 वापस लेने, राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में मनमाने ढंग से फीस वृद्धि पर रोक लगाने, बिहार के सभी सभी विश्वविद्यालयों में रिक्त पड़े शिक्षकों - कर्मचारियों के पदों को अभिलंब भर्ती करने, बिहार के बदहाल शिक्षण संस्थानों में नियमित सत्र व नियमित कक्षा सुनिश्चित करने आदि मांगों के साथ आइसा नेताओं ने काॅलेज कैम्पस में हस्ताक्षर अभियान की सुरूआत किया, आइसा नेता महफूज ने कहा कि नई शिक्षा नीति शिक्षा में निजीकरण को प्रोत्साहित कर रहा है। जिसका सीधा असर कमजोर वर्ग के छात्रों पर पडेगा, एक नीजी यूनिवर्सिटी अशोका है जिसमें बीए करने के लिए एक साल का फीस चार लाख रुपए है, जब सभी काॅलेज नीजी हाथों में चल जाएगा तो क्या हालात होगा अन्दाज लगाया जा सकता है, आइसा प्रभारी सुनील यादव ने कहा कि शिकाशविदों का हमेशा से ही मानना रहा है कि भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6% शिक्षा पर खर्च करने की आवश्यकता है, वर्ष 1968 और उसके बाद की हर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह अनुशंसा की गई है, लेकिन इसके 52 वर्ष बाद भी देश में सार्वजनिक शिक्षा पर महज 3.1% खर्च किया जा रहा है।
आगे कहा कि नीचे तबक़े के लोगों के भीतर ऊँची शिक्षा की आकांक्षा पैदा हुई है, इसी आकांक्षा का फायदा उठाकर सरकार यह कहते हुए कि जो पुराने शैक्षिणक संस्थान हैं, वह एलिटिज्म को बढ़ावा देते थे इसलिए हम इसे ख़त्म करना चाहते हैं। लेकिन असल में वह यह कर रहे हैं कि नीचे के तबक़े को और अधिक पीछे धकेल रहे हैं; मसलन- सीटों की कटौती कर रहे हैं।”
इनकी पुरी कोशिश है कि सरकारी स्कूल के बच्चे सरकारी कॉलेज-यूनिवर्सिटी तक नहीं पहुँचे इसलिए सीट बढ़ोतरी की बात कभी नहीं होती है। हाँ, सीयूसीईटी की बात जरूर होती है। सीट बढ़ेंगे तो जाहिर-सी बात है कि कॉम्पीटिशन कम होगा और ज्यादा बच्चे, जिसको अच्छे शिक्षक और क्लासरूम की जरूरत है, उनकी एंट्री होगी। लेकिन यह लोग छंटनी और नए तरीकों से कैसे कर सकते हैं, इसके बारे में जरूर सोचते हैं। अच्छे दिन का सपना दिखाकर, एनईपी को बार-बार आगे दिखा कर यह व्यवस्था हमें हर रोज मूर्ख बना रही है।”
बीए में एडमिशन के लिए अब एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट देंना होगा। इसका सिलेबस किसका होगा, स्टेट बोर्ड का या सेंट्रल बोर्ड- सीबीएसई का। दूसरा सवाल कि अगर कॉमन एंट्रेंस टेस्ट होगा तो कोचिंग का एम्पायर खड़ा होगा। तो यह कोचिंग कहाँ खुलेगी, दिल्ली, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में।
गाँवों में कोई कोचिंग सेंटर नहीं खुला होगा। वहां कोई पढाई नहीं है।
कंप्यूटर पर बैठकर मल्टीप्ल चॉइस क्वेश्चन का आंसर कौन दे सकता है। जिनकी पीढ़ियों में लोगों ने हाथ से कलम तक नहीं पकड़ी, उनके बच्चों की अंगुलियाँ कंप्यूटर पर जाने पर थरथराती हैं। यानी गरीबों को शिक्षा से दूर करने की साजिश है, नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन पढाई की खुब चर्चा हो रही हैं, कोरोना काल में हमारा अनुभव कैसा रहा, हम सब देखें हैं जैसे 50 लोगों की क्लास ऑनलाइन चली, तो 25-30 बच्चे गायब हो गए। जो 20-25 बच्चे नहीं आएं, उनमें 99 प्रतिशत प्रथम पीढ़ी के पढ़ाने वाले बच्चे थे। इस नई शिक्षा नीति और सीयूसीईटी के आने से सबसे पहले पढाई से दूर वह लोग होंगे, जो हजारों सालों से पढाई से दूर थे। इस अवसर पर आइसा नेता असफाक, दीपक कुमार, सनी, लक्की आदि ने भी अपने विचार रखा
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