भाकपा माले ने 23 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव पर किया सेमिनार

1857के गद्दारों और अंग्रेजो के दलालों, दंगाई-भाजपाइयों के खिलाफ माले ने किया संघर्ष का संकल्प

देश को मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंकने की साजिश को नाकाम करें : माले

बेतिया | 23 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव पर हरीबाटीका चौक पर स्थित सुकन्या उत्सव विवाह भवन में भाकपा माले ने सेमिनार का आयोजन किया, सेमिनार को सम्बोधित करते हुए भाकपा माले जिला कमिटी सदस्य सुनील कुमार राव ने कहा कि आजादी की लड़ाई, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यह गौरव भोजपुर-आरा को ही हासिल हुआ जहां "बूढ़े भारत में भी फिर से आई नई जवानी थी" और अंग्रेज़ शासन थर्रा उठा था। और हां, पूरे देश में गौरव आरा शहर को ही हासिल हुआ जहां गुलामी के खिलाफ विद्रोह के अपराध में कीन्हीं एक-दो , दस-बीस, पचीस-पचास-सौ को नही पूरे के पूरे शहर को मुजरिम करार दिया गया था। अंग्रेज़ी कोर्ट में पेशी की पुकार होती थी- 'आरा हाजीर हो! जिस लडाई की कहानी आज भी रोमांचित करती हो और आज आज़ाद देश में भी मौजुद गुलामी की हर छाया के खिलाफ़ लड़ने के संकल्प भरती है।

भाकपा माले राज्य कमिटी सदस्य सुनील यादव ने कहा कि भाजपा साजिश के तहत आजादी के अमृत महोत्सव की आड़ में भाजज्ञमपाई इस बार बाबू कुंवर सिंह को निशाना बना रहे हैं. यही भाजपाई 1857 के गद्दार डुमरांव महाराज की प्रतिमा भी बनवा रहे हैं. बाबू कुंवर सिंह की मौत के बाद उनकी संपत्ति के एक बड़े भाग को अंग्रेजों ने इनाजम स्वरूप डुमरांव महाराज को सुपुर्द किया था, जिन्होंने हर कदम पर अंग्रेजों का साथ दिया था. तो दूसरी तरफ बाबू कुंवर सिंह का विजयोत्सव मना रहे हैं, माले नेता ने कहा कि भाजपाइयों कान खोल कर सुन लो, गद्दार और क्रांतिकारी एक सांचे में कभी फिट नहीं किए जा सकते.

माले नेता सह बैरिया पंचायत मुखिया नविन कुमार ने कहा कि अमित शाह का इतिहास क्या है? सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके देश में उन्माद पैदा करना ही इनका पेशा रहा है. देश को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसा देने वाले भाजपाइयों को बाबू कुंवर सिंह का नाम लेने क्या नैतिक हक है?

इनौस नेता अफाक हुसैन ने कहा कि बाबू कुंवर सिंह तो हिंदू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े समर्थक थे, 1857 के नेता जुल्फीकार अली से थे. जिससे जाहिर होता है कि उस युद्ध में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अभूतपूर्व एकता थी. ये सभी क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ एक व्यापक मोर्चाबंदी की चर्चा किया करते थे. 1857 के पहली लड़ाई में हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच बनी एकता बाद में भी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की आधारशिला बनी रही. ऐसी एकता के प्रबल समर्थक बाबू कुंवर सिंह को दंगाई-भाजपाईयों के हाथों कभी हड़पने नहीं दिया जाएगा.

इस अवसर पर भाकपा माले नेता सुरेन्द्र चौधरी, धर्म कुशवाहा, योगेन्द्र यादव, दिनेश गुप्ता, हारून गद्दी, अब्दुल कलाम, राजेन्द्र प्रसाद कुशवाहा, यूसुफ जावेद आदि नेताओं ने भी देश को मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंकने की साजिश को नाकाम करने तथा 1857 के गद्दारों और अंग्रेजो के दलालों, दंगाई-भाजपाइयों के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया.

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