कोविड-19 तीसरी लहर से पहले यह हालत, वायरल बुखार और निमोनिया की चपेट में बच्चे

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच जिले में वायरल बुखार का कहर शुरू हो गया है. पीड़ितों में बड़ी संख्या बच्चों की है. परिणाम यह है कि जिले के सबसे बड़े अस्पताल जीएमसीएच के साथ-साथ शहर के निजी क्लिनिकों में संचालित हो रहे शिशु अस्पतालों के सारे बेड भर चुके हैं. 

इलाज करते डॉक्टर 

शहर के नौ महत्वपूर्ण शिशु रोग विशेषज्ञों की क्लीनिकों पर प्रतिदिन सुबह से ही बीमार बच्चों का तांता लगा रह रहा है. जीएमसीएच के चौथे तल्ले पर स्थित शिशु वार्ड में लगाये गये कुल 24 बेड बच्चों से भरे पड़े हैं. इतना ही नहीं, एसएनसीयू अर्थात सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट में रखे गए नौ रेडिएंट वार्मर में से लगभग 6 पर नवजात शिशु बीमारी से जूझ रहे हैं. 

स्थिति यह है कि बेड नहीं रहने के कारण अस्पताल आ रहे नये बीमार बच्चों को वार्ड में भर्ती नहीं किया जा रहा है. अधिकांश बच्चे सर्दी, खांसी, सांस फूलने, बुखार और निमोनिया से पीड़ित होकर इलाज के लिए भर्ती हो रहे हैं.ड्यूटी पर तैनात शिशु रोग विसेसज्ञ डॉक्टर बिरेन्द्र कुमार ने बताया कि संशाधन की घोर कमी है।आनेवाले दिनों में और केश बढने की उमीद है.

नौनिहालों की जान पर भारी पड़ रहा है, संसाधनों का टोटा

जीएमसीएच के शिशु वार्ड के संसाधन की बात करें तो वार्ड में जाने पर साफ तौर पर पता चलता है कि चौथे तल्ले पर स्थित शिशु वार्ड के लिए सी सेक्शन के तीन खंड में 18 तथा डी सेक्शन के एक खंड में 6 बेड़ लगाए गए हैं, जो कुल मिलाकर 24 होते हैं. तो वही डी सेक्शन में ही बनाये गये एसएनसीयू में नौ रेडिएंट वार्मर नवजात बच्चों के लिए रखे गए हैं. 

जन्म से लेकर 28 दिन तक के बच्चों का इलाज करने वाला नीकू अर्थात न्यूबॉर्न या न्यूनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट और 28 दिन से लेकर अधिकतम 15 वर्ष तक के बच्चों का इलाज करने वाला पीकू अर्थात पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट का कोई अता-पता नहीं है. 

मेडिकल कॉलेज के ही एक वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ के मुताबिक अगर नीकू और पीकू रहता, तो इनमें उपयोग होने वाले ब्लड प्रेशर मॉनिटर, वेंटिलेटर रेस्पिरेटर, कार्डियोपलमोनरी मॉनिटर, अंबिलिकल कैथेटर, सी-पैप अर्थात कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर, नेजल कैनुला और नेजल प्रॉग्स उपलब्ध होते।

उपरोक्त जीवन रक्षक मशीनों व सामानों की बात तो दूर, शिशु वार्ड में एक मल्टी पारा मॉनिटर तक उपलब्ध नहीं है. बुखार तक देखने के लिए शिशु मरीज के परिजनों को अपना थर्मामीटर रखना पड़ता है. एक नेबुलाइजर मशीन के सहारे नर्सों को वार्ड के सभी बच्चों को नेबुलाइज करना पड़ता है।

अस्पताल प्रशासन नहीं चेता, तो जिलेवासियों को पड़ सकता है भारी

शिशु वार्ड में चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ, बेड के साथ-साथ बच्चों की चिकित्सा में उपयोग होने वाले मशीनों की उपलब्धता अगर आने वाले दिनों में सुनिश्चित नहीं की गई। तो मेडिकल कॉलेज प्रशासन की इस लापरवाही का खामियाजा पूरे जिले के लोगों को भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि जिस प्रकार प्रतिदिन बीमार बच्चों की संख्या में इजाफा हो रहा है। कहीं ना कहीं यह आगामी दिनों के लिए खतरे की घंटी बन सकती है।

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